दिवंगत भरत सिंह कुंदनपुर के घर पहुंचीं वसुंधरा राजे, अर्पित की भावपूर्ण श्रद्धांजलि

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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दिवंगत कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर के कोटा स्थित निवास पर पहुंचकर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान राजे ने भरत सिंह के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित किए और शोकाकुल परिजनों को सांत्वना दी। यह तस्वीर राजनीतिक सीमाओं से परे मानवीय संवेदना का प्रतीक बनी।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद सम्मान की भावना

वसुंधरा राजे और भरत सिंह कुंदनपुर के बीच का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक रहा है। 1998 के लोकसभा चुनाव में दोनों एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में थे, जहां वसुंधरा राजे ने भरत सिंह को पराजित किया था। इसके बावजूद, वसुंधरा राजे ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रदेश की राजनीतिक व सामाजिक चेतना में भरत सिंह का योगदान अविस्मरणीय है।

इतना ही नहीं, 2007 में जब राजस्थान में वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार थी, तभी भरत सिंह को सर्वश्रेष्ठ विधायक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह दर्शाता है कि भरत सिंह की ईमानदारी और जनसेवा की पहचान दलगत राजनीति से परे थी।

भरत सिंह कुंदनपुर का राजनीतिक सफर

भरत सिंह कुंदनपुर का जन्म 15 अगस्त 1950 को हुआ था। उनका राजनीतिक सफर वार्ड पंच से शुरू होकर कैबिनेट मंत्री तक पहुंचा। वे चार बार विधायक रहे – 10वीं, 12वीं, 13वीं और 15वीं राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में। अशोक गहलोत सरकार में वे पंचायतीराज एवं सार्वजनिक निर्माण विभाग के मंत्री रहे।

भरत सिंह की सादगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कैबिनेट मंत्री रहने के बाद उन्होंने 2014 में अपने गांव कुंदनपुर में वार्ड पंच का चुनाव लड़ा और जीते। उनका कहना था – “काम करने के लिए बड़ा-छोटा पद मायने नहीं रखता, आपकी इच्छाशक्ति महत्व रखती है।”

ईमानदारी और बेबाकी के प्रतीक

भरत सिंह को “हाड़ौती का शेर” कहा जाता था। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा मुखर रहे और अपनी ही सरकार की खामियों पर भी खुलकर बोलते थे। उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। गांधीवादी विचारधारा के अनुयायी भरत सिंह की ईमानदारी की सराहना विपक्षी नेता भी किया करते थे।

एक तस्वीर जो बताती है कि राजनीति से परे भी कुछ है

वसुंधरा राजे का भरत सिंह के घर पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि ईमानदारी और सादगी का सम्मान राजनीतिक दलों की सीमाओं से परे है। एक ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, दूसरी ओर भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री – लेकिन जब बात एक सच्चे जनसेवक को श्रद्धांजलि देने की आई, तो राजनीतिक मतभेद गौण हो गए।

यह तस्वीर राजस्थान की राजनीति में एक नई मिसाल कायम करती है – जहां विरोधी भी एक-दूसरे के प्रति सम्मान रखते हैं और मानवीय संवेदनाओं को राजनीति से ऊपर मानते हैं।

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